न तुमको भूल पायेंगे सोचो ज़रा गुरु
क्य होगा बिन तुम्हारे सोचो ज़रा गुरु
कल्याण हो तुम्हारा वो शब्द बोलते हैं
वो पितृत्व तुम्हारा ममता जो घोलता है
ज्ञान का वो आश्रय आशा जो दे गया
क्या सिर थपथपाया तुमने ज़रा गुरु
वात्सल्य भावना जो विश्वास पा गई
वो भव्य भावना जोे दीपक जगा गई
मृत्यु मिल जाये कभी नाराज़ तुम होवो
इक पल भी तुमसे दूरी अब कैसे हो गुरु
हों आंखे नम कभी तो सुरभि खिला देना
तम की घटा में तुम ज्योति जला देना
रचना जो सृजित की है ये तुम्हारी याद में
मृदुल भावना है हृदय की मेरे गुरु
क्य होगा बिन तुम्हारे सोचो ज़रा गुरु
कल्याण हो तुम्हारा वो शब्द बोलते हैं
वो पितृत्व तुम्हारा ममता जो घोलता है
ज्ञान का वो आश्रय आशा जो दे गया
क्या सिर थपथपाया तुमने ज़रा गुरु
वात्सल्य भावना जो विश्वास पा गई
वो भव्य भावना जोे दीपक जगा गई
मृत्यु मिल जाये कभी नाराज़ तुम होवो
इक पल भी तुमसे दूरी अब कैसे हो गुरु
हों आंखे नम कभी तो सुरभि खिला देना
तम की घटा में तुम ज्योति जला देना
रचना जो सृजित की है ये तुम्हारी याद में
मृदुल भावना है हृदय की मेरे गुरु
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