Monday, 15 February 2016

मृदुल भावना

न तुमको भूल पायेंगे सोचो ज़रा गुरु
क्य होगा बिन तुम्हारे सोचो ज़रा गुरु

कल्याण हो तुम्हारा वो शब्द बोलते हैं
वो पितृत्व तुम्हारा ममता जो घोलता है
ज्ञान का वो आश्रय आशा जो दे गया
क्या सिर थपथपाया तुमने ज़रा गुरु

वात्सल्य भावना जो विश्वास पा गई
वो भव्य भावना जोे दीपक जगा गई
मृत्यु मिल जाये कभी नाराज़ तुम होवो
इक पल भी तुमसे दूरी अब कैसे हो गुरु

हों आंखे नम कभी तो सुरभि खिला देना
तम की घटा में तुम ज्योति जला देना
रचना जो सृजित की है ये तुम्हारी याद में
मृदुल भावना है हृदय की मेरे गुरु

 




Saturday, 6 February 2016

कला

                                                                                  
कला का अपना                                                                   

अलग एक अंदाज़ है,
अलग ही आभा मण्डल
अलग ही संसार है। 

रिस रहे ज़ख्मों  पर 
मरहम सा एहसास है,
लोरी सुनाता झूले में 
रंगों का अम्बार है। 

तीन रंग जीवन के 
सुबह दोपहरी शाम हैं,
सतो रजो और तमो 
ब्रह्मांड की पहचान  हैं। 

 स्वर्ग से निकलना चाहे 
 अप्सरा की मांग है 
आसमाँ से युद्ध करती 
इन्द्रधनुष की धार है। 
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मैं तुझ सी बन जाऊँ कैसे?

 हे देव बता  दे आज मुझे
मैं तुझ सी  बन जाऊँ  कैसे?                

 मेरा मन  नदी की धारा
 पारे की भाँति डाँवाडोल,
 तू है स्थिरता की मूरत
 मैं पत्थर बन जाऊँ कैसे ?                                                     

 हे देव बता  दे आज मुझे
 मैं --------------------?

दुःख से घिरा हुआ आकाश
कहती थी माँ देखा है
मंदिर में तेरे घी जला
मैं दीपक बन जाऊँ कैसे ?

हे देव बता  दे आज मुझे
 मैं --------------------?


 




भाव संपदा

जब रोते  थे  तब हसा दिया , अब  हस्ते  हैं तो रुला दिया
खुले क्षितिज का स्वपन दिखाकर ,  कैद में हमको  सुला दिया।

अपना बोलूँ और इतराऊँ , अपना मानू  और इठलाऊं,
अपने हो तो अपना समझूं , मैं क्यों इसको  सपना समझूँ,
रे यायावर ! आकर कह दो, साँसों में क्या मिला दिया
खुले क्षितिज--------------------------------------



Wednesday, 3 February 2016

मौन कविता

स्वाँति  गिरी इक शांत लहर से,
 नीली झील के बीच कमल में,
शब्दों को जब छुआ अधर ने,
मन पंछी बन उड़ा गगन में,