ऐसे कब तक और
सहेंगे, जु़ल्म तुम्हारे प्राण
हमारे।। टेक।।
कटु शब्दों के
पार कहीं पर, धैर्य की सीमा
बड़ी है,
प्रतिस्पर्धा की
नोंक-झोंक में, देखनी निर्णय की
घड़ी है।
होगा न्याय इसी
धरती पर, सब कुछ सामने आयेगा,
सफेदी पुते हुए
चेहरों पर, दर्पण प्रश्न उठायेगा।
फिर अवसाद की उस
बेला में, अकुलायेंगे नयन तुम्हारे,
ऐसे कब
तक-----------------------।।
बादल सहित बरसात
होयेगी, मरूस्थल में भाप होयेगी,
गर्म रेत के
पदचिह्नों पर, छालों से मुलाकात
होयेगी।
जब चुभेंगे
काँटें बबूल के, अम्बर में धूल
नज़र आयेगी,
रेत से बनी हुई
दीवार,
इक ठोकर से गिर जायेगी।
बिम्बित होकर तब
हृदय में, चिल्लायेंगे शब्द हमारे,
ऐसे कब
तक-----------------------।।
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